जमशेदपुर : पूरे कोल्हान क्षेत्र में सोमवार को वट सावित्री व्रत श्रद्धा, आस्था और उत्साह के साथ मनाया गया. अखंड सौभाग्य, पति की लंबी उम्र और परिवार की सुख-समृद्धि की कामना को लेकर सुहागिन महिलाओं ने विधिपूर्वक वट वृक्ष की पूजा की. सुबह से ही पारंपरिक परिधान, सोलह श्रृंगार और पूजन सामग्री के साथ महिलाएं वट वृक्ष के नीचे एकत्र होने लगीं और समूह में पूजा-अर्चना शुरू हुई.
विभिन्न वट वृक्ष स्थलों और मंदिर परिसरों में बड़ी संख्या में सुहागिनें जुटीं. महिलाओं ने वट वृक्ष की परिक्रमा की, रक्षा सूत्र बांधा, एक-दूसरे को सिंदूर लगाया और आरती कर फल एवं दान सामग्री अर्पित की. कई स्थानों पर पुजारियों ने पतिव्रता सावित्री और सत्यवान की कथा सुनाई, जिसमें सावित्री अपने मृत पति के प्राण यमराज से वापस ले आती है. यह कथा नारी शक्ति, प्रेम, धैर्य और समर्पण की प्रतीक मानी जाती है.
वट वृक्ष: श्रद्धा, प्रकृति और स्वास्थ्य का प्रतीक
पंडित दयाशंकर पांडेय ने बताया कि वट सावित्री व्रत पतिव्रता धर्म का प्रतीक है और यह व्रत महिलाओं को न केवल धार्मिक बल देता है, बल्कि स्वास्थ्य और मानसिक संतुलन का भी प्रतीक बन गया है. वट वृक्ष का हर अंग औषधीय गुणों से भरपूर होता है – पत्तियां, शाखाएं, फल और जड़ से कई रोगों की औषधियां बनाई जाती हैं. यह वृक्ष पर्यावरण संतुलन में भी बड़ी भूमिका निभाता है और अधिक ऑक्सीजन उत्सर्जित करता है.
पौराणिक कथा के अनुसार, सावित्री ने अपने मृत पति सत्यवान को वट वृक्ष के नीचे लिटाया था, जहां यमराज उनके प्राण लेने आए थे. सावित्री ने अपने पतिव्रता धर्म, बुद्धिमत्ता और समर्पण के बल पर यमराज से अपने पति के प्राण वापस लिए. कहा जाता है कि जब सावित्री ने वट वृक्ष की परिक्रमा की, तभी सत्यवान के शरीर में प्राणों का संचार हुआ. इसी आस्था के साथ आज भी सुहागिन महिलाएं वट वृक्ष की पूजा कर उसकी परिक्रमा करती हैं. जो महिलाएं वट वृक्ष तक नहीं पहुंच पातीं, वे गमले में लगे वट के पौधे की पूजा भी करती हैं. धार्मिक मान्यता है कि वट वृक्ष की पूजा स्वास्थ्य के लिए लाभकारी और आयु में वृद्धि करनेवाली होती है.